नारी
नारी
हवा में स्पंदन हो रहा।
नारी का क्रंदन अब कहां रहा।
बावीसवी सदी की यह नारी है।
तेइसवीं में जाने की तैयारी है।
इसका लक्ष्य निर्धारित है।
इसके भाव उच्चारित है।
हवा को मित्र बनाया है।
वृक्षों-सा तटस्थ बनाया है।
पग-पग पर गुरु बना रही।
हर हाथ से आशीर्वाद पा रही।
पर्दे से बाहर है फिर भी
पर्दे की मर्यादा समझा रही।
अपनी मर्यादा में रहकर।
देश को आगे रखती है।
दुआओं का कोषागार है।
बच्चे हो या बड़े, बुजुर्ग
सबकी पालनहार है।
कभी गुरु कभी शिष्य बन
समभाव बनाती है।
इसीलिए तो अहम् न अभिमान
का घड़ा कभी भर पाती है।
चुनौतियां कई आई गई
सबका हल निकाल लाती है।
नारी है नारी का फर्ज निभाती है।
