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Zeetu Bagarty

Romance Inspirational

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Zeetu Bagarty

Romance Inspirational

एक सिमटती हुई पहचान🌈

एक सिमटती हुई पहचान🌈

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न नर हूँ न मादा, इस बाह्माण की

 संरचना हूँ,

मैं जज़्बातों से लिपटे है दोनों प्राण

 मेरे, ईश्वर की इच्छा से पनपी

 रचना हूँ मैं


सिमट रही है मेरी पहचान, गली

 मोहल्लों के चक्कर में,

 थक गए हैं ये इबादत के हाथ,

 दुखती तालियों के टक्कर में


अपनों से पराये हुएं हम, इस

 समाज के कड़वे सवालों से,

 आखिर खुद के अस्तित्व से लड़

 रहे हैं हम, इस जहां के बनाये

 मसलों से


संजोए रखी कुछ अनकही

 ख्वाहिशे, इस बिलखते मन के

 खाने में,

 ना चाहते हुए भी बिक रहे हैं ये

 तन, गुमनाम कोठियां के

 तहखाने में


झुकी रहतीं हैं हमारी निगाहें,

 समाज की हीन नजरिए से

चूर हो रहें हैं अरमानों में लिपटे

 आत्मसम्मान, परिवेश के तुझ

 रवैये से


मिल गई हमें सांवैधानिक सौगात,

 तीसरे दर्जे के रूप में,

 आखिर कब मिलेगी बुनियादी

 अधिकार, भारतीय नागरिक के

 स्वरूप में !


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