STORYMIRROR

Zeetu Bagarty

Others

3  

Zeetu Bagarty

Others

मेरी गलती भी कुछ ऐसी थी.....

मेरी गलती भी कुछ ऐसी थी.....

1 min
181

मेरी गलती भी कुछ ऐसी थी जिसकी ना कोई माफी थी, 

नाराज़ हो गए मेरे अपने मुझसे क्या ये सज़ा मेरे लिए काफ़ी थी ?


अब जभी मैं नज़रें मिलाना चाहूं सबसे

पहले उन लोगों से नजरें चुराऊँ,

थोड़ा सा सिर उठा पहले इधर-उधर देखूं, 

फिर दिल की धड़कने कुछ इस कदर बढ़ जाती है,

मानो एक चिड़िया सुनसान गढ़ के ऊपर से गुज़र जाती है।

आँखों में शर्म और हया लिए अपने चेहरे को छुपाना चाहूँ, 

अपने आप को खुद से रूबरू कराना चाहूँ,

हर पल अपनी गलतियों पर पछताती रहूँ, 

जब-जब कोशिश करूँ नजरें मिलाने की अपनी आँखें नाचती रहूँ

हाँ, 

मेरी गलती ही कुछ ऐसी थी जिसकी ना कोई माफी थी, 

नाराज़ हो गए मेरे अपने मुझसे ये सज़ा मेरे लिए काफ़ी थी....


Rate this content
Log in