STORYMIRROR

Zeetu Bagarty

Classics Inspirational Thriller

4  

Zeetu Bagarty

Classics Inspirational Thriller

खुद की तलाश...

खुद की तलाश...

1 min
165

मेरी उंगलियाँ रुक जाती है,

सोच थम जाती है,

कितनी अजीब बात है ना,

मैं खुद को जाहीर नहीं कर पा रही हूँ,

क्या मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं है


या कभी खुद के बारे में सोचा ही नहीं,

कभी कोई मुलाकात नहीं की खुद से,

चलो आज खुद से मिल हैं,

कौन हूँ मैं..?

किसी की बेटी

किसी का बहन


किसी की पत्नी या थी या बनूंगी,

ऐसे रिश्ते ना पन्नों में सजती रहते हैं, 

ना ही जिंदगी मैं,

लेकिन एक रिश्ता है जो मेरा है,

 कोई है जो मेरे साथ पल पल जी रहा है आज कल,

 कभी में मां हूं तो


कभी किसी की बहन

कभी किसी की बेटी,

तो कभी किसी की पत्नी

लेकिन में कोन हुं..?

मेरी अपनी पहचान क्या है ?


 मुझे भी कोई नाम मिले,

जो ईस रिश्ते से परे हो,

जिस्की पहचान रिश्तों के जैसा हो

ये कोशिश है उस नाम की तलाश की,

एक औरत की तलाश की।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics