समलैंगिकता एक मुश्किल...
समलैंगिकता एक मुश्किल...
कितना आसान है चले जाना यहाँ
तोड़ किसी का दिल,
जिस पे गुजरे वो जाने
समलैंगिकता है एक मुश्किल...
हर रोज जाने कितनी ही
भावनाओं की हत्या होती है मेरी,
कत्ल भरे बाजार होता है मगर
मिलता नहीं कोई क़ातिल...
ये सभ्य समाज के वासी
असभ्यता से पेश आते है,
नाम मुझे भी मिला घर से फिर भी
हिजड़ा, मीठा, छक्का कह के
खुश है इनका दिल...
यूँ तो लाख समस्या है देश में
अपने,
फिर भी इनको लगता है
समलैंगिकता ही है एक
मुश्किल...
मेरे मुश्किल जीवन को और
कठिनाइयों से भरने वाले,
मुझे मिटाने से जाने इनको होता
क्या हासिल...
मैं अपने जीवन में अपने रंग में
जीना चाहता हूँ,
मेरे जीवन में ये क्यों लोग होते है
दाखिल...
ये पढ़े लिखें ये ये सभ्य लोग जो
किसी की भावनाओं को नहीं
समझते न इज्जत है करते,
इनको फिर कहना है चाहूँ ये सारे
है जाहिल.....
मेरे जीवन की मुश्किलें, मेरे रंग,
मेरी तकलीफें सब मैं जानता हूँ,
तुम पे कहाँ गुजरी तुम कहाँ
जानो समलैंगिकता एक
मुश्किल...
