कौन है जो द्वार मन के खटखटाता
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता
इस नयन में प्रीत पल पल मुस्कुराता है।
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता है?
कौन है जो प्रीत बन उर में समाया है?
कौन है जो गीत बन अधरों पे आया है?
कौन सावन सा बरस फिर लौट जाता है?
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता है?
किसके आने से लगी, आशा नई जगने?
किसके आने से लगी, मैं स्वयं को ठगने?
कौन है जो प्रीत की सरगम बजाता है?
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता है?
कौन आया साँझ में, ले भोर का संदेश?
कौन जीवित कर गया है, प्रेम का परिवेश?
कौन दीपक बन हृदय में जगमगाता है?
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता है?
कौन है जो धूप में भी छाँव लगता है?
कंकड़ीली राह पर भी ठाँव लगता है।
कौन आकर स्वप्न में मुझको जगाता है?
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता है?
कौन अगणित भेष धर भरमा रहा मुझको?
हाय..... मेरी राह से भटका रहा मुझको।
कौन अंतस में समाया रोज जाता है?
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता है?
मीत है या, ये नियति का कोई खेला है?
प्रेम है या बंधनों का ये झमेला है?
कौन नित नए बंधनों में जोड़ जाता है?
कौन है जो द्वार मन के खटखटाता है?