प्रेम
प्रेम
प्रेम को कैसे समझाया जाए,
प्रेम को शब्दों में न बांधा जाए,
परिभाषित करने को इसको
शब्द कम पड़ जाते हैं....
शायद इसीलिए "मुस्कराहट" बनी,
"आंखें" और" मौन" बना,।
बिना बोले,समझाए,सब कुछ समझ
आ जाये,वो ही प्रेम कहलाये।
ये दो रूहों की आपसी मुलाकात है,
बिना बोले,कहे,दो लोगों की बात है।
इसमें आंखे सब कुछ बोल जाती हैं,
मौन और मुस्कराहट,सारे राज खोल जाती है।

