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दयाल शरण

Romance

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दयाल शरण

Romance

अर्धांगिनी

अर्धांगिनी

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किन लम्हों की यादें लेकर

फिर लौटी है सुनहरी धूप

शब्द वही थे अर्थ सुनाने

फिर लौटी है सुनहरी धूप।।


लिपे-पुते आंगन पे बिसरे

बिखरे रंगोली के रंग

अक्षद के रोली, कुम-कुम को

पावन कलश बनाती धूप।।


तुम भी खुद में खो जाओ

और मैं भी ख़ुद में खो जाऊं

इन सब मे हम दोनों को

फिर एक कराने आईं धूप।।


इक पल चन्दन की खुशबू

तो दूजे पल चंपा की खुशबू

दरवाजे के छोर से झांके

अदब से दबी-झुकी सी धूप।।


क्या खोया और क्या पाएंगे

सुबह से शाम के आगम तक

जितना भी शेष जीवन है

तुम संग बिताने आई धूप।।


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