इंतज़ार
इंतज़ार




इंतज़ार है मुझे, हां मुझे इंतज़ार है....
बातों से भरी उस शाम का,
जहॉं तुम और मैं चाय की चुस्कियों संग समय बितायें।
ना कोई शिकायत ना ही कोई शिकन।
कुछ तुम अपनी कहो, कुछ हम अपनी सुनायें।
मुझे इंतज़ार है..
उस इक ऐसी शाम का ,
जब चुटकलों संग तुम्हारी हँसी के कहकहे मुझे भी हँसाये।
जहां ना हो कोई ऊब, विरक्ति और ना ही दिन भर की घुटन।
जब रंगीन लगने लगे मुझे हर ओर की हवायें ।
इंतज़ार है मुझे
इक ऐसी शाम का
हर तरफ़ मद्धम मद्धम जुगनू जगमगाये
ना कोई उदासी ना हो कोई अकेलापन
तारों की बारात संग जब इंदु चाँदनी बरसाये।
इंतज़ार है मुझे,
इक ऐसी ही शाम का...