हिन्दी और संस्कृत शिक्षिका.NHS गवर्नर, एक्युप्रेशर डॉक्टर,कविता के माध्यम से विचारों,भावों को शब्दों में पिरोने का प्रयास।
हँसते हँसते रोने लगती है तो कभी रोते रोते हँसने का ढोंग करती है हँसते हँसते रोने लगती है तो कभी रोते रोते हँसने का ढोंग करती है
अनुबंध प्रेम का बांध प्रिय, मैं तुझमें में ही ख़ुद को पाती हूँ । अनुबंध प्रेम का बांध प्रिय, मैं तुझमें में ही ख़ुद को पाती हूँ ।
तूझसे ही है हर व्यक्ति, तू ही तो हर व्यक्ति का आधार है। तूझसे ही है हर व्यक्ति, तू ही तो हर व्यक्ति का आधार है।
जीवन की इस आपाधापी में फिर कैसे ढूँढते खुद का ही बचपन है। जीवन की इस आपाधापी में फिर कैसे ढूँढते खुद का ही बचपन है।
गरम चाय की प्याली की ये गरमाहट मन को कर देता भाव विभोर है। गरम चाय की प्याली की ये गरमाहट मन को कर देता भाव विभोर है।
दूर दूर तक नहीं दिखता अंत, न कोई किनारा दूर दूर तक नहीं दिखता अंत, न कोई किनारा
जहॉं तुम और मैं चाय की चुस्कियों संग समय बितायें। ना कोई शिकायत ना ही कोई शिकन। जहॉं तुम और मैं चाय की चुस्कियों संग समय बितायें। ना कोई शिकायत ना ही कोई शिक...
चलो मिलकर राष्ट्रगान गायें हम। स्वतंत्र भारत का उद्घोष लगायें हम। चलो मिलकर राष्ट्रगान गायें हम। स्वतंत्र भारत का उद्घोष लगायें हम।
अकड़ कर मत खड़ा हो इस तरह, ना कर घमण्ड इन बुलंदियों का। अकड़ कर मत खड़ा हो इस तरह, ना कर घमण्ड इन बुलंदियों का।
मैं नीवं की ईंट हूँ, ना ही मेरा कोई अस्तित्व है। ना मेरे कोई सपने हैं ! मैं नीवं की ईंट हूँ, ना ही मेरा कोई अस्तित्व है। ना मेरे कोई सपने हैं !