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Indu Barot

Abstract

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Indu Barot

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दिसम्बर

दिसम्बर

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धुँध में धुँधलाता, सर्द भरा 

कोहरे की चादर में लिपटा दिसम्बर है।

बस घोर अन्धेरा चारों ओर है

लगती रातें लम्बी और सवेरा दूर है।

झरते मोती से ओस में डूबे पत्ते पौधे हर ओर हैं।

कंपकंपाता सा ठिठुराता सा

सिहरन भरी शीत बरसाता दिसम्बर है।

जीव जन्तु सब दिखते दुबके दुबके से

सभी लोग दिखते छिपने को तरसे तरसे से

कोहरे की चादर ओढे दिखते केवल बिजली के खम्बे हर ओर हैं।

कुनकुनाती, शरमाती धूप में भी 

ठण्डक का अहसास दिलाता दिसम्बर है।

मूँगफली के गरम दानों की चटकाहट

गरम चाय की प्याली की ये गरमाहट

मन को कर देता भाव विभोर है।

उस पर यूँ कविता बतलाना

ठण्डक में भी हरषाता दिसम्बर है।



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