आओगे क्या
आओगे क्या

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छेड़ दिया है दुखती रग को.. फिर से सताने आओगे क्या
आँखों में उम्मीद है जागी.. फिर से मनाने आओगे क्या
उलझ गए थे रिश्तों के डोर.. उसे सुलझाने आओगे क्या
बुझ गयी थी जिसकी आशा.. उसकी द्वीप जलाने आओगे क्या
कुरेद दिया है ज़ख्मों को तुमने.. उस पर मलहम लगाने आओगे क्या
हमारे बीच की जो रंजिश है.. उसे मिटाने आओगे क्या
भूल गए थे हम जो लम्हे..उसे याद दिलाने आओगे क्या
होठ मेरे खिल खिला उठे.. किसी बहाने आओगे क्या!