चाय और तुम
चाय और तुम
याद है-- तुम्हें??
वो दिन,
वो पलछिन--
जब बैठकर एक साथ--
बालकनी में---
अल्लसुबह
या
सुरमई सांझ में--
चाय पिया करते थे
चाय की महक को---
अंदर उतारते हुए---
सुख-दुख सांझा किया करते थे,
घर के मसलों पर---
बहस करते करते
शुरू होती लड़ाई,
चाय के आखिरी घूंटों के साथ,
खत्म हो जाती थी।
आज, तुम तो छूट गए,
मुझसे
परयह
कमबख्त चाय
आज भी छूट नहीं रही मुझसे,
अब, मैं अकेली ही,
बालकनी में बैठकर,
चाय के घूंटों के साथ,
अपने मसले तो
सुलझा लेती हूं,
पर
बहस किससे करूं??
यह समझ नहीं पाती हूँ,
कमबख्त--
ये चाय की प्याली,
रोज तुम्हारी याद दिला जाती है--
यूंही--------------