पुरानी डायरी के पन्नों से
पुरानी डायरी के पन्नों से
जब कभी देखती हूं---
यादों के झरोखे से----
बहुत कुछ--- बिखरा हुआ नजर आता है!
पीछे पड़ा हुआ है----
एक ढेर----
टूटे हुए सपनों का,
बीच-बीच में,
कुछ हंसी पलों का---
मंजर भी नजर आता है!
उम्र गुजरी है सारी---
किन किन हालातों में---
लेखा-जोखा---
कुछ उल्झा सा
नज़र आता है,
फिर भी कुछ तो था, जिंदगी में ऐसा,
जिसके साए में---
यह जीवन संवरा सा नजर आता है,
वैसे तो!
रफ्तार बहुत तेज है----
इन स
ांसों की,
पीछे मुड़कर देखने का---
वक्त, कहां मिल पाता है,
कुछ सपनों के निशान,
फिर भी ऐसे हैं----
जिन का साया साथ-साथ चलता नजर आता है,
जिंदगी में---
ठोकरें, ऐसी खाई हमने,
जिनका जख्म---
आज तक--हरा नज़र आता है!
दोष किसे दूं----
अपनी गलतियों का???
ये दोष तो सारा----
किस्मत का--- नजर आता है!
जब भी देखती हूं----
यादों के झरोखों से----
बहुत कुछ बिखरा नजर आता है !