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Ashu Kapoor

Abstract

4  

Ashu Kapoor

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बचपन से पचपन तक

बचपन से पचपन तक

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बचपन से पहुँची

पचपन में----

क्या अब कोई मौसम बाकी है ?

सहे बहुत-- गिले--शिकवे,

क्या अब भी

कोई दर्द बाकी है ?


मिले बहुत यार-दोस्त

इस दुनिया के मेले में

जीवन के इस मोड़ पर

कया कोई दुशमन

मिलना बाकी है ?


बहुत सहे--

लोगों के दांव-पेच

दुनियादारी के झमेलों में

खोते रहे--- इज्जते नफ्ज

दूसरों की अना के चक्कर में,

क्या अब भी--

किसी का उधार चुकाना बाकी है ?


थक गई हूँ-- चलते-चलते

जीवन की भूल-भुलैया में

क्या अब भी--

किसी के पैरों की

ठोकर खाना बाकी है ?


बहुत प्यार किया था ---तुम से

  अब ना आशिकी बाकी है,

  झूठ-सच से परे--

  अब कोई प्रपंच 

  ना बाकी है,

  चल पड़ी हूँ---

  नई राह पर अब,

  जहाँ पचपन के तराने हैं


  जीवन में अब कुछ भी नहीं

  बस अनुभव के खजाने हैं।


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