बचपन से पचपन तक
बचपन से पचपन तक


बचपन से पहुँची
पचपन में----
क्या अब कोई मौसम बाकी है ?
सहे बहुत-- गिले--शिकवे,
क्या अब भी
कोई दर्द बाकी है ?
मिले बहुत यार-दोस्त
इस दुनिया के मेले में
जीवन के इस मोड़ पर
कया कोई दुशमन
मिलना बाकी है ?
बहुत सहे--
लोगों के दांव-पेच
दुनियादारी के झमेलों में
खोते रहे--- इज्जते नफ्ज
दूसरों की अना के चक्कर में,
क्या अब भी--
किसी का उधार चुकाना बाकी है ?
थक गई हूँ-- चलते-चलते
जीवन की भूल-भुलैया में
क्या अब भी--
किसी के पैरों की
ठोकर खाना बाकी है ?
बहुत प्यार किया था ---तुम से
अब ना आशिकी बाकी है,
झूठ-सच से परे--
अब कोई प्रपंच
ना बाकी है,
चल पड़ी हूँ---
नई राह पर अब,
जहाँ पचपन के तराने हैं
जीवन में अब कुछ भी नहीं
बस अनुभव के खजाने हैं।