मन ना भये दस-बीस💕💕
मन ना भये दस-बीस💕💕
सखी री!
मन ना भये---
दस-बीस---
होते तो--- ना जाने--
मैं क्या कर जाती--
---- एक मन होता गर,
आकाश जैसा----
तो उसे, निराकार-- निर्विवाद
यूहीं छोड़ देती---
विचरने को---
एक मन होता---जो,
धरती जैसा---
तो धीरज धर कर---
सह लेती--- यह असहनीय पीड़ा,
एक मन जो होता---
सलिल जैसा----
चाहे कितनी हो कठिनाई,
राह अपनी,बना ही लेता,
एक मन--पवन-समीर
जो होता----
जिसके स्नेहिल स्पर्श को
पकड़--त्याग कर---
सब मोह-माया--
पंछी सम उड़ जाता,
एक मन होता---
सूरज जैसा---
कि, आग मे
ं तप कर भी--
कुंदन सा--
निखर जाता--
डूब कर,फिर से
उदय होता!
एक मन होता---
चांद जैसा---
हर आवेग को
सह कर----
सबको शीतलता देता,
पर
सखी!
मन तो एक ही है---
जो हरदम,हर क्षण
बस खोया रहता है---
--- उसी की याद में,
कुछ और देखना नहीं चाहता,
कुछ भी सुनना नहीं चाहता--
बस--- निशि-वासर
लगा रहता है---
उसी की धुन में।