बस गलतफहमी थी
बस गलतफहमी थी
उसकी हरकतें भा रही थी मन को,
उसकी अदाएँ लुभा रही थी दिल को,
इश्क़ नहीं था वो, बस गलतफहमी थी।
एक ख़्याल था,
खुशफहमी थी,
इश्क़ नहीं था वो, बस गलतफहमी थी।
मुझे अपने अश्कों की वजह बतानी पड़ती थी,
मुझे अपने जख्मों की जगह दिखानी पड़ती थी,
बिन बोले वह क्यों समझता नहीं था,
बिन रोके वो क्यों ठहरता नहीं था,
इश्क नहीं था वह बस खुशफहमी थी।
एक किस्सा था वो जवानी का,
कोई हिस्सा नहीं था वो जिंदगानी का,
एक लगाओ था, एक आदत थी,
इश्क नहीं था वह , बस गलतफहमी थी।
मोहब्बत होती तो हम मिल न जाते,
सच्ची चाहत होती तो बिछड़ते ही भला क्यों,
वो समझता अगर तो उलझते नहीं,
शायद जुदा होते नहीं तो फ़िर कभी सुलझते भी नहींं।
वो ख़्वाब था हकीकत नहीं,
मैं पसंद थी सिर्फ, उसकी ज़रूरत नही।
बस एक ख़्याल था, गलतफहमी थी, इश्क़ नहीं था वो।