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Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

तन्हाई

तन्हाई

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 अजनबी शहर के अजनबी

 लोग, हमारी तन्हाई पर मुस्कराते रहे,

कुछ सुनते रहे, कुछ सुनाते रहे। 


हम घुट घुट कर जीते रहे, 

वो अपनी मस्ती में गाते रहे। 


जिंदगी हमें आजमाती रही, वो हमें तड़पाते रहे। 


बन गए गिटार की तार से

चोट खाते रहे मुस्कराते रहे। 


सख्त हालात में तेज तूफान से दर बदर टकराते रहे। 

बन कर चिराग रात की तन्हाई में वो जलते रहे, 

हमें भी जलाते रहे। 


न इधर के रहे न उधर के सुदर्शन, बन कर पतंगा

उसी रोशनी के इर्द गिर्द चक्कर लगाते रहे। 

गुमसुम रहे दीपक की भांति, प्यार पतंगे का आजमाते रहेां।


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