न हम होते न तुम होती !
न हम होते न तुम होती !
कितना अच्छा होता यदि हम न होते न ही तुम होती !
न मिलन की इतनी तड़प होती ! न अकेलापन होता !
न ही तुमसे बिछड़ने का सितम होता !
खैर ये कवि कल्पित है ! मगर आज मैं भी हूँ और तुम भी हो !
मिलन की सरगम भी है ! दूर रहकर भी कितने पास आते दिख रहें !
मगर दुनियावालों को हमारी प्रेम की खुराक क्यों नहीं हजम होती ??
जब हमारी हामी है हमसफ़र बनने की तो फिर क्यों हमारे बीच आड़े आती है !
मगर हम भी इन दुनियावालों के नियमों के आगे थोड़े ही झुक जायेंगे!
इश्क की है उनसे बीच रास्ते में थोड़े ही साथ निभाना भूल जायेंगें ।
आखिरी साँस रहेगी जिस्म में जबतक न साथ कभी न छूटेगा !
थाम लिया है हाथ उनका अब हाथ थोड़े ही छूटेगा!
आज हम भी है और वो भी है !
मगर दुनिया वालों की हमारी खुशियाँ हजम नहीं होती !