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Brijlala Rohan

Romance

4  

Brijlala Rohan

Romance

न हम होते न तुम होती !

न हम होते न तुम होती !

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कितना अच्छा होता यदि हम न होते न ही तुम होती !    

न मिलन की इतनी तड़प होती ! न अकेलापन होता !

न ही तुमसे बिछड़ने का सितम होता ! 

खैर ये कवि कल्पित है ! मगर आज मैं भी हूँ और तुम भी हो !

मिलन की सरगम भी है ! दूर रहकर भी कितने पास आते दिख रहें !

मगर दुनियावालों को हमारी प्रेम की खुराक क्यों नहीं हजम होती ??

जब हमारी हामी है हमसफ़र बनने की तो फिर क्यों हमारे बीच आड़े आती है !

मगर हम भी इन दुनियावालों के नियमों के आगे थोड़े ही झुक जायेंगे! 

इश्क की है उनसे बीच रास्ते में थोड़े ही साथ निभाना भूल जायेंगें ।

आखिरी साँस रहेगी जिस्म में जबतक न साथ कभी न छूटेगा !

थाम लिया है हाथ उनका अब हाथ थोड़े ही छूटेगा! 

आज हम भी है और वो भी है !

मगर दुनिया वालों की हमारी खुशियाँ हजम नहीं होती ! 


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