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aazam nayyar

Romance

4.2  

aazam nayyar

Romance

मुहब्बत

मुहब्बत

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474



रोज़ उसके चेहरे पे नज़ाकत रही!

अब नहीं उसको मुझसे मुहब्बत रही


प्यार की बात करता नहीं वो मुझसे 

रोज़ उससे यही इक शिकायत रही


कब वफ़ा से रही आदत उसकी भरी 

बेवफ़ा से भरी उसकी फ़ितरत रही


बात दिल की कहूँ मैं उसे वो मिले 

मिलनें की ही उससे रोज़ हसरत रही


जल रहे लोग मेरे इतने प्यार से 

नाम पे ही उल्फ़त के बग़ावत रही


प्यार के फूल भेजूं जितने उसे 

उतनी मेरी तरफ़ आती नफ़रत रही 


प्यार में हिज्र ऐसा मिला आज़म को 

यादों से एक पल भी न राहत रही.

आज़म नैय्यर 


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