"ये उन दिनों की बाते है।"
"ये उन दिनों की बाते है।"
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ये उन दिनों की बातें है,
जब सारा देश थमा हुआ था,
महामारी के डर से,
हर कोई घर मे जमा हुआ था,
तब एक दोस्त बनी अनजानाी सी ,
मेरी कविताओं का दीवानी सी ,
हुई दोस्ती, बड़ी बाते,
यु लगने लगी जानी पहचानी सी,
मुलाकातें नहीं बस बाते हुई,
कभी दिल की सुनते, तो
कभी परवाह जताते,
ना जाने कितनी राते हुई,
सायद मै एक अजनबी पर,
ज्यादा ही विस्वास कर रहा था,
उड़ते परिंदे से उम्र भर के साथ,
की आश कर रहा था,
समय बीतता चला गया,
बातें ख़तम होती चली गई,
मैं गिनी चुनी यादों को,
मला मे पिरोता चला गया,
धीरे से ये बेनाम सा रिश्ता,
शायद टूट रहा था,
कुछ था नहीं फिर भी,
पीछे कुछ छुट् रहा था,
फिर भी पीछे कुछ छूट रहा था।