"तेरे प्रियतम की मैं"
"तेरे प्रियतम की मैं"
मैं तो बस सखी थी तेरे प्रीतम की, उसकी अर्धांगिनी तो अब तुम हो।
मैं तो बस सखी थी,तेरे प्रीतम की उसकी जीवनसंगिनी तो तुम हो।
मैं उसके किताबों के पन्नों में दबी सूखी हुई पंखुड़ियां हूं,
उसकी जिंदगी को महकाती हुई गुलाब तो तुम हो।
मैं तो कल थी उसके जीवन की अपने प्रीतम के जिंदगी का आज तो तुम हो।
क्यों रंजिशें भरी निगाहों से मुझे घूर रही हो,
मैं तो उसका कल थी उसकी निगाहों में तो आज तुम हो।
कभी होती थी मैं मौजूद महज़ उसके दिलो दिमाग में, उसकी बाहों में तो आज तुम हो।
हाँ कुछ पल चली थी संग तेरे प्रियतम के, पर उसकी राहों तो अब सिर्फ तुम हो।
मैं तो बस सखी थी तेरे प्रीतम की उसकी जीवनसंगिनी तो तुम हो ।
मैं तो गुज़रा किस्सा हुँ,तेरे प्रीतम की उसकी जिंदगी का हिस्सा तो अब तुम हो ।
मैंने तो सिर्फ चार कदम चला था तेरे प्रीतम के संग,उसकी जीवन संग्नि तो तुम हो।
मैं तो सिर्फ सखी थी तेरे प्रीतम की, उसकी अर्धांगिनी तो अब तुम हो।
