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Zubina Anjum

Romance Classics

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Zubina Anjum

Romance Classics

इश्क़ नहीं था वो

इश्क़ नहीं था वो

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उसकी हरकतें भा रही थी मन को,

 उसकी अदायें लुभा रही थी दिल को,

इश्क़ नहीं था वो, बस गलत फहमी थी।

एक ख़्याल था, 

खुशफहमी थी,


 इश्क़ नहीं था वो, बस गलतफहमी थी। 

मुझे अपने अश्कों की वजह बतानी पड़ती थी, 

मुझे अपने जख्मों की जगह दिखानी पड़ती थी, 

बिन बोले वह क्यों समझता नहीं था, 

बिन रोके वो क्यों ठहरता नहीं था, 

इश्क नहीं था वह बस खुशफहमी थी, 

एक किस्सा था वो जवानी का, 


कोई हिस्सा नहीं था वो जिंदगानी का, 

एक लगाओ था एक आदत थी इश्क नहीं था वह,

बस गलतफहमी थी। 

मोहब्बत होती तो हम मिल न जाते, 

सच्ची चाहत होती तो बिछड़ते ही भला क्यों, 

वो समझता अगर तो उलझते नहीं, 

शायद जुदा होते नहीं तो फ़िर कभी सुलझते भी नही। 


वो ख़्वाब था हकीकत नहीं, मैं पसंद थी उसकी ज़रूरत नही। 

‌बस एक ख़्याल था, गलतफहमी थी, इश्क़ नहीं था वो। 


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