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AVINASH KUMAR

Romance

4  

AVINASH KUMAR

Romance

प्रेम को तरसता दिल

प्रेम को तरसता दिल

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झूठा प्रेम हर तरफ छाया कोहरे सा है लगता 

पर मेरा दिल सिर्फ सच्चे प्रेम को है तरसता 


कुछ ठिठुरते, कांपते निकलते हैं अल्फाज आज भी 

अब प्रेम की तलाश में लोग मिल सके शायद कहीं


प्रेम की सुनहरी किरण शायद निकले फिर कभी 

मन और दिल जान को सुकून आयेगा शायद ही 


प्रेम से अपरिचित लोग भटकते दिन भर 

तरसते प्रेम की एक किरण को और


लौटते अपने घरों को मन में उम्मीद लिये

कि प्रेम की धूप फिर खिलेगी


प्रेम से अंजान लोग नही जानते हैं कि

उनके सपनो का सूर्य किसी गगन चुम्बकीय 


इमारत के पीछे से उदित होता हैं जहां से कोई किरण,

शायद हर दिल की झोंपड़ी तक नहीं पहुंच पाती है।


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