विरह वेदना
विरह वेदना
इश्क अंधेरी गलियों में,
खोई लता सी रहती है।
फिर युक्त हो लता कलियों से,
दर्द पतझड़ का सहती है।
दृग नीर छलकते हैं उसके,
फूट फूट कर रोती है।
जब कभी सखियों में उसकी,
चर्चा मेरी होती है।
विरह तपन बन अंजन सी,
दिन रैन नैन में रहती है।
है खबर नहीं आने की मगर,
आशा में मगन वो रहती है।
छु छु कानन कलियों को,
लव यू लव यू कहती है।
जब कभी सखियों में उसकी,
चर्चा मेरी होती है।
दिन रहने बरसते नैन मगर ,
तृप्त ना आंखें होती हैं।
पी पी पेप्सी कोला ठंडा,
ठंडक ना दिल को होती है।
पल-पल उस अतीत की यादें,
सोई जगती रहती है।
जब कभी सखियों में उसकी,
चर्चा मेरी होती है।