घर-घर होंगे अन्ना हजारे
घर-घर होंगे अन्ना हजारे
एक दिन की बात थी,
घनघोर अंधेरी रात थी।
बिजली चमक रही थी नभ में,
बादल तेज गरज रहा था।
मैं अपने रास्ते पर,
धीरे-धीरे जा रहा था।
पास में था श्मशान घाट,
तभी आवाज आई, रुक ओ जाट।
तेज चली एक आँधी,
सामने था, महात्मा गांधी।
बेटा, क्यों कर आए थे आजाद,
क्या लिया आजादी का स्वाद।
अरे क्या हो गया मेरी इंडिया को,
जो लूट रहा सबकी निंदिया को।
हर और अत्याचार, हाहाकार,
लूट, खसोट और भ्रष्टाचार।
महंगाई, बेकारी, बेरोजगार,
भुखमरी, बेईमानी और दुराचार।
बाड़ खेत को खा रही लगातार,
आतंकियों की जय जय कार।
गरीब भूखे मरते हैं,
आतंकी ऐश करते हैं।
जनता के पैसों पर नेता,
अपनी जेबें भरते हैं।
क्या इसीलिए हजारों ने,
दी थी अपनी कुर्बानी।
काला धन जमा कर करके,
खूब करो बेईमानी।
मैंने कहा ओ, गांधी जी
चल रही है अन्ना की, आँँधी जी।
अब लोकपाल बिल आएगा,
तो भ्रष्टाचार मिट जाएगा।
एक बात कहूं, दबी जुबान में,
बाबा रामदेव भी हैं, मैदान में।
गांधी मुझसे बोला,
तो मेरा तन मन डोला।
एक अन्ना से क्या होगा,
क्या होंगे वारे न्यारे।
भ्रष्टाचार तब मिटेगा,
जब घर-घर होंगे अन्ना हजारे।
जब घर-घर होंगे अन्ना हजारे।।