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Ajeet dalal

Others

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किसान का दर्द

किसान का दर्द

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ए हवा ए हवा,

 जरा सी हवा चला।

 हो गया तरबतर,

अब मेरे पसीने सुखा ।।


थक गया हूं बाट देखते,

मेघा जल बरसाएंगे ।

वर्षा जल से सूखे खेत,

फिर से लहलहाएंगे।।

मगर नभ में ये घन,

बहुत बहुत तरसाते है।

अब तू ही, हे! पवन,

मुझ पे थोड़ा तरस खा ।।

जरा सी हवा चला,

ए हवा ए हवा ।

जरा सी हवा चला।।


कहने को अन्नदाता हूं,

पर सबके मुंह की खाता हूं ।

खाना देकर सारे जग को,

खुद भूखा सो जाता हूं ।।

सदियों से मैं कमा रहा,

अपना हृदय जला रहा,।।

फिर भी निज बाल गोपाल का,

तन तक नहीं ढक पाता हूं।

 इस चिलचिलाती धूप में ,

 मेरा ना बदन जला ।।

 जरा सी हवा चला,

 ए हवा ए हवा।

 जरा सी हवा चला।।

          


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