STORYMIRROR

Ajeet dalal

Fantasy

4  

Ajeet dalal

Fantasy

जब मैं जिंदा था

जब मैं जिंदा था

1 min
432

सुना है मेरी समाधि पर ,

फूल चढ़ाने लगे हैं।

 बड़े-बड़े लोग भी अपना,

 माथा ठिकाने लगे हैं।


 जिनको कभी देखा करता था,

 टीवी और अखबारों में।

सुना है, मेरी समाधि पर,

पैदल आने लगे हैं।

अरे ओ कालिया ,अरे ओ भूरिया,

तुम तो सखा थे मेरे।

तुम ही बताओ ना, क्या सच में लोग,

मेरे नाम के जयकारे लगाने लगे हैं।

अरे ! बड़ी भीड़ है वहां,

पंचायत सी लगी है।


चल -चल चलकर सुनता हूं,

 क्या हो रहा है ?

वाह ! मजा आ गया, लोग मेरी बरसी पर,

 मेला लगवाने वाले हैं।

 अरे और उधर, मेरी पत्नी,

 नेताओं से घिरी खड़ी है।

चल -चल चलकर देखता हूं वहां,

 क्या हो रहा है ?

अरे वाह ! मेरी पत्नी को,

अशोक चक्र दिलवाने वाले हैं।

 जा यार अजीत, सारी जिंदगी,

 टीन -टप्पर में गुजार दी।

 कभी सुख की रोटी, ढंग के कपड़े,

 भी नहीं दिला पाया ,अपनो को।

 और आज, तिरंगे में लिपटकर क्या आया

 कर्णधार फ्लेट दिलाने मेें लगे हैं।


अरी ओ माँँ, अरी ओ बहिन,

क्षमा- क्षमा- क्षमा।

 जब जिंदा था तो ,

 कुछ नहीं कर पाया मैं।

 अब देख ना, अपने लाल को,

 लोग अमर बनाने में लगे हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy