चांद...!!
चांद...!!
मुझे बहुत प्रिय था...
उन सितारों को इक टक देखना..
चंद्रमा का बीच में तन्हा रहना...
औ सितारों के साथ चमकना....
फिर इक रात मेरी तन्हाई की...
सूना आसमां.. सितारों का रुठना
अमावस्या की काली रात औ...
चंद्रमा का यूं ओझल हो जाना...
फिर न दिखे आंखों से हसीं ख्वाब..
खत्म हो गयीं वफ़ा की दास्तां...
औ ज़ारी रहा फिर सितारों का..
एकबारगी टूट कर गिरना..
मन्नतों से जुड़ना औ इश्क़ में
खोना-पाना, जिंदगी को समेटना...!!