हमनवां #बस आज की तरह#
हमनवां #बस आज की तरह#
सुनो, तुमसे अपने झुर्रियों वाले चेहरे पर ...आज की तरह ही
तुम्हारी आँखों में अपनी तस्वीर देखना चाहती हूँ....
तुम मौन भी रहो और मैं ऐसे सुनती रहूँ तुम्हारे सफेद बालों के साथ वही
ज़िद्द, वही बातें आज की तरह ही...तुम्हारे लफ़्ज़ों के साथ उतने ही सुकून से ठहरना चाहती हूँ....
वो जो छूट गए पल वो जो साथ ले गए कल आने वाले कल के साथ तुम्हारे
झुर्रियों वाले हाथ को वफ़ा के थमे एतबार पर आज की तरह ही..
अपने काँपते हुए हाथों से तुम्हारे हाथों को थामना चाहती हूँ...
कि इश्क़ नामालूम कैसा है...सच या झूठ या कुछ और..
कभी तुम्हारे अलावा भी कुछ सोचा नहीं...तुम्हारी ख्वाहिशों में लिपटी हुई आज की तरह ही...
बढ़ती उम्र के तजुर्बे के साथ तुम में मैं अपना सफ़र चाहती हूँ...
कि तेरे-मेरे ढलते उम्र में भी बरकरार निभती रहे
मैं और तुम बस आज की तरह ही महके इश्क़ रवां..
बिखरे हर सूँ.. एहसास हमनवां...!!