दर्द......!!
दर्द......!!
दर्द से जब भर जाती हूँ
सच कहूं थोड़ा सा तुमको
मैं आज भी पढ़ आती हूँ ....
कुछ अधूरी चिट्ठियों को...
बारी - बारी समझ आती हूँ ....
अपनी नादानियों के यकीन पर
थोड़ा सा यूँ भी हँस आती हूँ.
तेरे ख़यालो से ख़ामोशी से
यकीन के साथ मिल आती हूँ …
तेरे ख्वाहिशों के नाम में
समझती रही हर सपना
फ़क़त इन्ही ख्वाहिशों में
बेइंतिहा एहसास जी आती हूँ ....
क्या फ़र्क़ है कल और आज में
चिट्ठियों में तुम नज़र आते हो
तुम का हर फासला फैसले में
तेरे बिन कुछ कहे समझ आती हूँ....
कि वक़्त बदला ,
कुछ ज़िंदगी बदली
एहसासों की ज़मी से...
आँखों के कोरों में नमी ठहरी ...
थोड़े से तुम , थोड़ी सी मैं
वफाओं के संदली हवा में
तुम से मिलकर लौट आती हूँ ...
तेरी ही चिट्ठियां पढ़ आती हूँ ......!!
