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Ajay Singla

Abstract Fantasy Others

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Ajay Singla

Abstract Fantasy Others

ब्रह्माण्ड

ब्रह्माण्ड

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सपने में अपने मैं एक दिन

अंतरिक्ष में था घूमता

अपनी गैलेक्सी को वहां पे

करोड़ों में था ढूंढ़ता।


रास्ते में देखा मैने

अंतरिक्ष है जंग का मैदान

विस्फोट हो रहे हैं हर पल

तेजी से भरी मैंने उड़ान।


गिरता पड़ता पहुंच गया मैं

आकाश गंगा मिल गयी

लाखों तारे सूरज जैसे

बांछें मेरी खिल गयीं।


सूर्य को मैंने निहारा

गर्म था, वो जल रहा

चंदा मां पे जा पहुंचा

पैर रखूँ, उछल रहा।


मंगल ग्रह पर मैं पहुंचा तो

पहाड़ सारे लाल थे

ऐसे करते करते मुझको

बीत गए कई साल थे।


फिर मैं पहुंचा पृथ्वी पर

ऊपर से दिखती नीली थी

>

वायुमंडल यहीं मिला था

साँसे मैंने तब ली थीं।

 

सपने से जब उठ गया मैं

सोचा क्या भाग्य हमारा

पहाड़, नदिया और समुन्दर

एक जगह सारा का सारा।


धरती के सब जीव जंतु

पेड़ फूल हैं ये अनोखे

कहीं और मिल न पाएं

शीतल हवा के झोंके।


सबसे सूंदर ग्रह है ये

अब मुझे एहसास हुआ

रब ने फुर्सत से बनाया

मुझको ये आभास हुआ।


कद्र इसकी करते न हम

एक दिन ऐसा आएगा

 हमारी गलतिओं से ही

ये सब ख़तम हो जायेगा।


हमारी कितनी हैसियत है

और हम्मे कितना है दम

वजूद अपना ब्रह्माण्ड में क्या

जैसे रेत का दाना हैं हम।


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