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APOORV PANSE

Fantasy

5.0  

APOORV PANSE

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काश वो तुम होती

काश वो तुम होती

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झील के किनारे बैठे जब

उस तितली की हरकतें देखा तो लगा

काश वो तुम होती तो

उसे बस यूं ही निहारते रहता।।


बागों की गलियारी में उन

महकते फूलों को देखा तो लगा

काश वो तुम होती तो

उस महक को हर सांस में समा लेता।


कलकल करती नदी की

सुरीली आवाज़ सुनी तो लगा

काश वो तुम होती तो

तुम्हारी हर अदाओं में बह जाता।


समंदर को देखा तो लगा

कभी ठहरी तो कभी उफनती

काश वो तुम होती तो

अपनी नाव कभी किनारे ना लाता।


अगर तुम होती तो

हर उस घड़ी की सुई की तरह

हर पल गिनते हुए गुजरती ये ज़िन्दगी

हर उस पहिए की तरह

सारे फासले तय करती ये ज़िन्दगी।


हर उस कमल की तरह

कीचड़ में भी बनती पहचान

हर उस धागे सा लिपट के

बुने सपनों सा होता जहान।


बस एक अधूरी सी ज़िद थी मेरी

बस यादों के सहारे लिखते हुए मेरी कलम

ना ठहरती ना सूखती

मेरी ये ख्वाहिश अधूरी ना होती

अगर काश वो तुम होती।


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