तथ्य और सत्य
तथ्य और सत्य
सूरज लुढ़कता हुआ
समुन्दर के उसपार
गहराइयों में उतर रहा था
और उसका लाल लाल अक्स
टेंसू की बिखरी हुई पंखुड़ियों की तरह
समुन्दर में उठती हुयी लहरों के साथ
अठखेलियाँ कर रहा कर रहा था।
कैमरा कैद करता है
एक तस्वीर इस मनोहारी नजारे की।
शब्द दिमाग मे कौंधते हैं
एक खूबसूरत कविता बन जाती है
इसी फिक्स नजारे की।
चंद ही लम्हों में कैमरे में फिक्स तस्वीर
और शब्दों में उसका निरूपण
कल्पना में तब्दील हो जाते हैं
सूरज समुन्दर के उस पार
गहराइयों में उतर जाता है।
कल फिर ऐसा होगा
और यह कल्पना जो
चंद लम्हे पहले एक वास्तविकता थी
फिर वास्तविक बन जाएंगे
सूरज फिर समुन्दर के उस पार
गहराइयों में उतरता हुआ दिखेगा
हाँ इतना फर्क हो सकता है
कैमरा मैन की बायीं तरफ जुगाली करती हुई भैंस
और कवि की दांयी तरफ
हरी हरी घास करते हुऐ सफेद सफेद खरगोश
शायद न दिखें।
