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AVINASH KUMAR

Romance Fantasy

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AVINASH KUMAR

Romance Fantasy

पत्र जो लिखा मगर भेजा ही नहीं

पत्र जो लिखा मगर भेजा ही नहीं

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कल शाम लिख रहा था एक पत्र तुझे याद करके

लिखते लिखते सो गया तुझे याद करके

सोते सोते देखने लगा स्वप्न अनोखा 

मैं था तुम थी और कोई ना था 

तुम गा रही थी गीत वफा के 

मैं समंदर किनारे टहल रहा 

उड़ते-उड़ते पंक्षियो का भी 

कलरव अद्भुत गूंज रहा

कितना अनुपम नजारा था 

चांद भी लगता प्यारा था

सारी रात यों ही हंसते गाते बीत गई 

आंख खुली जो सुबह को मेरी

तुम मुझको कहीं दिखी नहीं 

मैं समझ गया ये सपना था 

जो दूर गया वो अपना था 

पर वो अपना अब रहा नहीं 

एक पत्र लिखा था तुमको मगर

भेजा ही नहीं 

कुमार अविनाश है ये जानता 

ये मृगमरीचिका है पानी की धार नहीं


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