वीरशादी लाल
वीरशादी लाल
गत 26 जनवरी मनाई जा रही थी,
शादी लाल को बिदकाये जा रही थी।
जो दुबका खड़ा था कोने में,
लेकर लाल रुमाल।
सुन शहीदों की दास्ताँ,
हाल हुआ बेहाल।
सोचा, काश कि देश गुलाम होता,
तो मैं भी उस पे कुर्बान होता।
इसी लग्न में घर आया,
सोचा समझा प्लान बनाया।
फिर बोला अपने बाप से,
कूदूँगा मैं तो छत से।
बाप का मन थोड़ा घबराया,
क्या? बेटा तू ने फरमाया।
बस पापा बातों की बात है,
वीरों की यही तो जात है।
मैं छत से गिरकर मर जाऊंगा,
वीर शहीदों में गिना जाऊंगा।
बाप बोला, काश कि बेटा तू मर जाए,
मेरा सीना चौड़ा कर जाए।
फिर कितनी खुशी की होगी बात,
तू बने शहीद मैं तेरा बाप ।
तपाक से बोला शादी लाल,
क्या गजब करते हो बाप।
शहीद हो जाऊं मैं ,
और नाम कमाओ आप।
हंस कर बोला बाप,
दिखा देना अपनी जात।
गुस्से में आया शादीलाल,
इतने में पहुंचा अजीत दलाल।
बोला, शेर होता ये भी चाचू ,
जो होता ये फौज में।
अब जैसा है ठीक है ,
रहने दो अपनी मौज में।
रहने दो अपनी मौज में।।