STORYMIRROR

कुमार संदीप

Fantasy

4.6  

कुमार संदीप

Fantasy

मैं एक दिन मर जाऊँँगा

मैं एक दिन मर जाऊँँगा

1 min
391


मैं एक दिन हमेशा के लिए जग से चला जाऊँगा

हाँ मैं अपनों से बहुत दूर चला जाऊँगा

मैं मरकर अपनों को आंसू व दुश्मनों को खुशी दे जाऊँगा

हाँ मैं मरकर अपने सारे गम व दर्द से छुटकारा पा लूँगा

हाँ मैं एक दिन मर जाऊँगा।


मैं एक दिन अपनों से रुख़सत होकर ईश्वर के पास चला जाऊँगा

हाँ मैं अपने अच्छे कर्म के लिए मरकर भी अमर हो जाऊँगा

मैं मरने के बाद चाहकर भी शव सज्जा पर से न उठ पाऊँगा

हाँ मैं मरकर अपनों के हिस्से में कुछ दिनों के लिए दर्द दे जाऊँगा

हाँ मैं एक दिन मर जाऊँगा।


मैं एक दिन हमेशा के लोगों को अलविदा कह जाऊँगा

हाँ मैं चाहकर भी अपनों के आंसू व दर्द न मिटा पाऊँगा

ैं मरने के बाद चाहकर भी अपनों के आंसू न पोंछ पाऊँगा

हाँ मैं मरकर अपने अहंकार से दुख से दर्द से मुक्त हो जाऊँगा 

हाँ मैं एक दिन मर जाऊँगा।


मैं एक दिन अपनों के बीच अपनी यादें छोड़ जाऊँगा

हाँ मेरे अपने मेरे मरने के बाद कुछ दिन रोएंगे 

मैं मरकर न जाने किस लोक जाऊँगा

हाँ मगर जहाँ भी रहूं मैं मेरे अपनों को नहीं भूल पाऊँगा

हाँ मैं एक दिन मर जाऊँगा।


मैं हमेशा के लिए दोस्तों से शुभचिंतकों से दूर हो जाऊँगा

हाँ मरने के बाद मेरी कमी का एहसास जरूर होगा 

मैं दौलत, शौहरत कमाऊँ या न कमाऊँ

हाँ मगर मैं सबके दिल में जगह बनाऊँगा

हाँ मैं एक दिन मर जाऊँगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy