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कुमार संदीप

Tragedy

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कुमार संदीप

Tragedy

दिन सामान्य हो या विशेष

दिन सामान्य हो या विशेष

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नववर्ष के आगमन की ख़ुशी में

जब सारा शहर झूमता है ख़ुशी से

तब गाँव का एक खेतीहर

करता है उस दिन भी खेतों में काम

आराम करना,ख़ुशियाँ मनाने की चाहत

उसकी भी होती होगी पर..

यदि एक दिन नहीं करेगा

वह खेतों में काम तो

उसके घर का चूल्हा बंद हो जाएगा

बच्चे बिलखने लगेंगे भूख से।।


नववर्ष के दिन जब डीजे की धून पर

नाचते हैं शहरवासी

उस वक्त गाँव की गलियों में

घूम-घूमकर बेचता है ठेले पर

दीनानाथ सोनपापड़ी, मिट्टी के खिलौने

ताकि घर खर्च चल सके सुचारू रुप से

साहब!

यदि एक दिन बैठ जाएगा

एक गरीब अपने घर में

नहीं जाएगा क

ाम पर तो

उसकी थाली में नहीं पहुंच पाएगी

दो वक्त की रोटी, दाल।।


नववर्ष के दिन स्नान करने के पश्चात

जब सामार्थ्यवान पहनते हैं नए-नए कपड़े

तब उन सबके चेहरों को निहारता है

निर्धन, असहाय एकटक

ईश्वर को दोष नहीं देता है

कि क्यूँ दी आपने गरीबी तोहफे में?

अपनी ख्वाहिश के संग समझौता कर

अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान बिखरने लगता है।।


दिन नववर्ष का हो या सामान्य

निर्धन के लिए है हर दिन एक समान

उसके जीवन में है हर दिन संघर्ष, दुख, दर्द

काश! ईश्वर न देते गरीबों को

गरीबी तोहफे में तो

सचमुच उनके साथ नाइंसाफी नहीं होती।।



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