ज़िन्दगी..
ज़िन्दगी..
धूप है कि छांव है,
ज़िन्दगी इक भूले बिसरे गांव हैं।
कुछ मिले , कुछ खो गये हैं,
कुछ खिले , कुछ अध खिले हैं।
थक चुके अब चलते चलते पांव हैं,
बीच दरिया आज डूबे नाव हैं।।
................ज़िन्दगी इक भूले बिसरे गांव हैं।
होश पाते ही हुआ,
तन-मन पतंगा।
पिल पड़ा करने ,
कठौती में ही गंगा।।
मोह-माया में फंसी सब जान हैं,
....... ज़िन्दगी इक भूले बिसरे गांव हैं।।
धूप है कि छांव है,
ज़िन्दगी इक भूले बिसरे गांव हैं।।
