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Supriya Devkar

Abstract Tragedy

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Supriya Devkar

Abstract Tragedy

अरमान

अरमान

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ना जाने कितने अरमान 

कुचल दिए गए मेरे 

दूसरों के मिजाज संभालते 

पल छूट गए हाथ से मेरे 

कल करूंगी अब करूंगी

कहते वक्त निकल गया 

जवानी का साया छूटकर 

बुढ़ापा नजर आया 

पीछे मुड़कर देखना 

अब बुरा लगता है 

हसीन पलों को छोड़ना

अब गुनाह लगता है 

किस्मत को कोसना 

छोड़ देना चाहिए 

हिस्से की खुशी खुद ही 

आजमाना चाहिए 



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