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SANDIP SINGH

Tragedy

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SANDIP SINGH

Tragedy

कवि के मन की पीर

कवि के मन की पीर

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कवि के मन की पीर है, अपनापन में ह्रास।

सभी मतलबी आज हैं, सता रहा है त्रास।।


कवि के मन की पीर को, कलम देय आवाज।

होगा सबकुछ ठीक अब, यह मुझको है नाज।।


कवि के मन की पीर से, बदलेगी हालात।

खुशियां ही खुशियां रहे, होंगे सब अभिजात।।


कवि के मन की पीर पर, दे दो अब सब ध्यान।

लिखते हैं सबके लिए, करते दूर अज्ञान।।


कवि के मन की पीर है, करें गरीबी दूर।

मिले सभी को हक सही, घर घर हों तब नूर।।



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