"अब भी मैं "
"अब भी मैं "
अब भी मैं रातों को उठ उठ कर, चीख जाती हूँ,
तुझे खोने का डर मैं तुझसे झगड़ कर दूर भगाती हूँ,
मेरी जगह पर एक दिन कोई और आयेगी,
मैं अपनी हालते दिल आख़िर किस को सुनाऊँगी।
इन सवालातों की बारिशों के डर से अक्सर तुम उठ कर भाग जाते हो।
मेरी इन बातों को बेबुनियाद जैसा नाम दे कर के
मेरे डर को पागल पन तुम बोल जाते हो।
अपनी दर्दों की दवा जब तुझ को बोल देती हूँ
तुझे क्यों ये बात खेल लगता है।
मैं अपने ज़ेहन से आख़िर उसे कैसे निकालूँगी,
मेरी बातों से उब कर तो, अक्सर तुम रूठ जाते हो।
मैं कहती हूँ न एक रोज़ तुम छोड़ जाओगे,
मेरी बातों को आसानी से क्यों मान नहीं लेते।
हां माना की वो कप मेरी मोहब्बत की निशानी है,
मगर उसके हाथों की चाये के आगे, मेरा तोहफा तुम भूल जाओगे।
चलो मैं मान लेती हूँ की तब भी तुम, मेरे पसन्द ये शर्ट पहनोगे,
मगर दोस्तों की तारीफ़ सुन कर के तुम उसकी की हुई किरिच और प्रेस पर ध्यान डालोगे।
अब बताओ कैसे मैं इन बातों के उलझन से पीछा छुड़ाऊँगी
तेरे सामने रो दूं तो, उल्टा मुझ ही पर नाराज़ होते हो।
किसी प्रेमी प्रेमिका के खुश हाल जोड़े में जब तेरे संग खुद को मैं देख नहीं पाती,
वो अक्सर सज संवर कर तेरे पास मुझको दिखाई देती है,
मैं उन लम्हों को ज़ेहन से मिटा नहीं पाती।
हाँ जानती हूँ कभी बेवजह सी उलझ कर तुझको भी नाराज़ करती हूँ ,
मगर उन बेवजह सी झगड़ों में वो ही छिपी होती है।
चलो अब जो भी हो तुझको तो मैं दुआ ही दूंगी,
मुझ सा नहीं, मुझसे कहीं बेहतर मिले तुझको।
मगर बरसो बाद जब मिलना तो यह ना कहना कि,
तुम्हें उससे भी मोहब्बत है।
गुजारिश है कि अपने लफ्जों से मुझे ज़ख़्मी ना करके तुम,
बस इतना ही कहना की, अब उससे ही मोहब्बत है।

