दीदार
दीदार
बैचेन हो जाती हूँ बार बार
याद आता है जब तेरा प्यार
प्यारे प्यारे सब यादों के तार
पल भर में हो जाते हैं साकार
जब मैं रूठूं तुम करते मनुहार
कितना सुख मिलता प्रिय भरतार
अब न कर सकूँ स्वागत न सत्कार
कि तुम मथुरा मैं रह गई उस पार
पा न सकहुँ तेरा कोई समाचार
विरह वेदना की पड़ी है बड़ी मार
मिल आती गर मिलते पंख उधार
कर आती सखी साजन का दीदार।

