चाहतें
चाहतें
चाहते चाहते चाहते और चाहते
इंसा को कब मिलती है इनसे राहते
कभी अंजुली भर की ही चाहत
तो कभी विशाल अंबर की चाहत
कभी मीठे बूंद की चाहत तो
कभी तीखे सागर की चाहत
चाहते चाहते चाहते और चाहते
इंसा को कब मिलती है इनसे राहते
कभी दिये की लौ की चाहत
तो कभी रवि किरण का चाहत
कभी चाँद की चाहत तो
कभी चाँदनी की चाहत
शमा को जलाने की चाहत
तो परवाने को जल जाने की चाहत
चाहते चाहते चाहते और चाहते
इंसा को कब मिलती है इनसे राहते
कभी सीप के मोती की चाहत
तो कभी पंछी के पंखों की चाहत
कभी जल की गहराई की चाहत
तो कभी गिरी की ऊँचाई की चाहत
कमबख़्त" ज़िंदगी तो बहाना है
इन चाहतों से ही तो पड़ती है
इंसा को जीने की आदत
फिर भी
चाहते चाहते चाहते और चाहते
इंसा को कब मिलती है इनसे राहते।