अनजाना
अनजाना
अचानक सी मुलाकात में कोई अपना स्वत: ही हो जाता है
मिलकर वो मुझसे फिर स्वयं से रुबरु इस तरह कराता है
पहचान न अभी मुझे उसकी ना मुझे वो भली भांति जानता है
छुअन से अपनी वो दिल में बसा सच्चा प्यार दर्शाता है
मौन हो जाता है मन मुस्कान देख उसकी जब वो लबों से फरमाता है
इश्क़ हैं उसे बहुत पर ज़ाहिर करने से थोड़ा हिचकिचाता है
दुःख हो या चिंता में सदा सामने मेरे बेवजह मुस्कराता है
बुद्धू है या नादान ये सोचकर दिल मेरा मेरे जज़्बातों से मिलवाता है
कुछ तो है उसमें ये उसकी रूह से मेरी रूह का परिचय करवाता है
समर्पण, मोहब्बत औऱ अपनापन सलीके से पेश मुझे आता है
अचानक सी मुलाकात में कोई अपना स्वत: ही हो जाता है
मिलकर वो मुझसे फिर स्वयं से रुबरु इस तरह कराता है
कुछ सोचकर दिल मेरा न जाने क्यूँ कभी-कभी घबराता है
शायद प्यार मेरा कभी-कभी मुझ पर बहुत हावी हो जाता है
आज भी कोई किसी को दिलों जान से इतना चाहता है
क्यूँ न फिर धड़कनों में समुन्द्र भाँति सैलाब उमड़ाता है
अनजाना अनजानी राहों की मन की कश्ती पर सैर कराता है
थाम हाथ मेरा वो पगला पूरी दुनिया की परिक्रमा लगाता है
महफ़ूज़ रखे हर पल खुदा उसको जिसका दिल मेरा नाम पुकारता है
इबादत में तेरी सजदा करूँ अल्लाह उसमें मुझे तू हमेशा नजर आता है।