दिलजानी
दिलजानी
यूं कभी तो मुझे तुम मिलो
मेरी सचाईयों के शहर में।
कर उतर तुम मेरे ख्वाबों से
बन जा नहीं कभी यादों का पहर रे।
जान के भी तुम अनजानी लगती
अब कभी तो गलत ठहराओ।
सिलसिला क्या है ये , तुम नहीं जब कुछ भी हो मेरी
क्यों तुम्हें इतना चाहने को चाहुं
और बुलाऊं तुझे दिलजानी।।
बस बात है और वक्त की ये निशानी
और जाना तुम साथ ना होके भी , दिल में हो दिलजानी
दिल में हो दिलजानी,दिल में हो दिलजानी।।
अब असर तेरा मुझ पर दीवानों सा छाया
तेरी तड़प में मैं गुनगुनया।
तेरी खबर की तलाश में हवा सा मैं भटका
तेरी एक झलक के सजदे रोज़ रब से कर आया।।
मैंने ना जाना क्या अपना हालत किया है
आयत की तरह तेरे नाम को पढ़ा है।
बूंद बूंद जो बारिश लगे हैं
असल में मन की मेरी वह बिसूरनेवाली सदा है।
दिलजानी मेरा बस तू ही खुदा है ,दिलजानी मेरी बस तू ही खुदा है।।