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Sughosh Deshpande

Drama Romance

4  

Sughosh Deshpande

Drama Romance

सूना मन का आँगन

सूना मन का आँगन

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247


सूना मन का आँगन, सूनी सी है अम्बर

मौसम तनहा तनहा, सुकून से है बेघर

ऊन की चादर जब सब लिपटे, लिपटे ग़म का हम

मेघा तरसे बादल बरसे खामोशियों का सावन

जब भी कंगन खनके खन खन यादें हमें तड़पाती हैं,

जब भी पायल छनके छन छन साजन हमें याद आती हैं

सूना मन का आँगन, जाम की है घर

क्या समझेगा कोई कैसी है अपनी उलझन

बेज़ार सी है ख्वाब भी, शिकवों के गीता लिखी

ठंडी आहें भरे यह राहें खुद ही खोयी खोयी


आबोहवा बर्बाद है, अपना न साथ कोई

फिर भी उनकी ख़ुशहालों की दुआओं की बीज बोई

सूना मन का आँगन, सूनी मेरी छाया

बस एक यक़ीं में जीता, के होता हैं रब राखा

आवाज़ उनकी आज भी इस शीश महल में गूंजी

अकेले जिस में सन्ग एक दिल के हर पल है दिख जाती

एहसास उनकी, उनकी वह खुशबू महसूस होती हम में है

बस ख्वाहिश वह आ जाए तो दुनिया क्या चीज़ है

सूना मन का आँगन और सूना है मेरा मन


देखे हर क्षण भरम इंतज़ार में उसके कदम

सूना मन का आँगन, है सूनी मेरी चितवन

सूनी खुशियों की शहर, सूना सूना धड़कन

सूना चाहत का रास्ता है ,सूनी लम्हों की बस्ती है

सूना भी है यह दर्द तो, सुनी ही होगी वह स्वर्ग

सूना मन का आँगन, सूनी साँसें हर दम

सूनी हवा बवण्डर और सूने सूने हैं हम



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