इश्क़
इश्क़
ये इश्क़ कैसा है क्या मैं कहूँ
बदनाम होकर भी इसमें रहूँ
इस इश्क़ के है नहीं कोई गवाह
बस था वो वक़्त जो गुज़र ही गया
ज़मीन आसमान ने देखा है सनम
मेरा सनम, मेरा सनम, ओ मेरा सनम
आँखें मैकदे सी, ज़ुल्फें रेशमी
चमन सा बदन, चेहरा मेहजबीन
तारीफ उसकी हज़ार भी है कम
मेरा सनम, बावरा सनम ओ वो है मेरा सनम
अपना मज़हब बस ये इश्क़ है
आबाद है इश्क़, मेरा नाम इश्क़ है
रंग इसमें कितने है भरे, पर लाल लहू से हम धुले
ज़माने ने देखा है ज़ख्म हमारा
बिना समझे कुछ भी हुआ है गंवारा
चाह मैं कितना भी करले तू सितम
मेरा सनम,मेरा सनम, ओ मेरा सनम
कमज़ोरी मेरी खुदाया खुद बना
जो उससे मांगी वो ना मिला
उसपे भरोसा जो ना किया, कौन है इस जहां में मेरा
इस इश्क़ का है कुछ तो निशाँ
बिन एहसास इसके न वजूद मुझको कोई मिला
कुर्बत के लम्हे हमे याद है
और के हम कितने बर्बाद है
आशिकी में क्या सही है क्या गलत
मगरूर होने को बस है मेरी मोहब्बत
इश्क़ मेरा मेहरबान हर जनम
मेरा सनम, मेरा सनम, ओ हाँ तू मेरा सनम