STORYMIRROR

Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

अजनबी

अजनबी

1 min
258

कुछ अजनबी चेहरों में

अजनबी बन गए हम। 

महफिल थी अनजानी

 गुलिस्ताँ ना बन सके हम। 


ना कोई पहचान सका ना समझ सका

ऐसे अजनबी बन गए हम। 

न दुश्मनी की ना दोस्ती किसी से

हर पल फिर भी ठुकराते रहे हम। 


अपने काम से काम रखते थे सदा

फिर भी ठोकर की तरह लगते रहे हम। 

मिले थे संस्कार जन्म से

उन्हीं पर चलते रहे हरदम। 


करते रहे मान बड़ों का

देते रहे इज्जत छोटों को हम। 

नहीं समझा अपना पराया

अपने कर्मों में ही लिपटे रहे हरदम। 


शायद कर्मों में कोई भूल थी

मिला ना उम्र भर मरहम। 

जिसका मन चाहा

ठोकर मार दिखाता रहा अपना

अपना दम। 


अजनबी थे अजनबी ही बने रहे

गैरों की नजरों में खटकते रहे हम। 

देखने में तो एक जैसे थे

फिर क्यों अजनबी दिखते रहे सिर्फ हम। 


अब तो आस बंदी है तेरे पर शम्भू

दिखता नहीं कोई अपना हमदम। 


कट गई काफी जिंदगी 

कट जायेंगे आहिस्ता आहिस्ता यह भी दिन। 

अपना कर्म करता चल सुदर्शन

जब साथ खुदा है तो फिर क्यों करता है गम। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance