प्यार का सफर
प्यार का सफर
एक ट्रेन सफर में हमने उसको, देखा पहली बार।
बस कुछ ही देर में उससे हो गयीं, मेरी आँखें चार।।
जब आंखों से आँख मिली, दिल ट्रेन के जैसे दौड़ा।
जैसे इश्क की पटरी पर, भागे कोई निगोड़ा।।
थोड़ी देर चलने के बाद, आया फिर स्टेशन।
उस दिलबर को देख के मेरे, जाग उठे इमोशन।
उसके दिल में घुसने की, न जाने क्या क्या जुगत लगाई।
लेकिन दिल तक जाने वाली, वो गली नहीं मिल पाई।।
कभी बालों में हाथ घुमाया, कभी निकाला फ़ोन।
इतना सब कुछ किया जो हमने, तब थोड़ा शरमाई।।
बात कुछ आगे बढ़ती, इससे पहले आ गई मंजिल।
हमको ऐसा लगा कि जैसे, रह जाएगा फिर सूना दिल।।
थमी ट्रेन से जब हमने, खिड़की से बाहर झांका
उसे देखने सब लोगों का, वहाँ लग गया तांता।।
इतनी भीड़ देखकर हमको, एक बात समझ में आई।
'राहुल' ये सुंदर कन्या नहीं प्रभु ने, तेरे लिए बनाई।।
उसकी प्रोफ़ाइल थी हाई, वो नहीं थी लड़की आम।
मन ही मन हम खुद से बोले, बेटा रखो काम से काम।।
जाते जाते उसने हमको, देखा और हाथ हिलाया।
हम हुए खुशी से पागल, दिल में प्रेम का दीप जलाया।।
लेकिन हमने अपने दिल को, खूब खूब समझाया।
बस ट्रेन लड़की को अब तक, कोई पकड़ न पाया।।